प्रबंध के उद्देश्य से आशय है की कोई भी संस्था चाहे व्यवसायिक हो या गैर व्यवसायिक हो कि कुछ पूर्व निर्धारित उद्देश्य होते हैं जो स्थापना के समय उसको निर्धारित किया जाता है अब प्रश्न यह होता है कि इन उद्देश्यों को कैसे प्राप्त किया जाए इस समस्या का समाधान प्रबंध द्वारा ही किया जाता है अतः इस समस्या से निपटने के लिए एक प्रबंधक को जो प्रयास करने पड़ते हैं वही प्रबंध के उद्देश्य कहलाते हैं जो निम्नलिखित हैं।
*उपलब्ध साधनों का अनुकूलतम उपयोग करना
*भिन्न-भिन्न व्यक्तियों की क्रियाओं में सामंजस्य स्थापित करना
*बाह्य जगत के साथ समन्वय स्थापित करना।
*संगठन और व्यक्तियों का एकीकरण सुनिश्चित करना।
*उपलब्ध साधनों का अनुकूलतम उपयोग करना- उपलब्ध साधनों का अनुकूलतम उपयोग करना का अर्थ है कि जो भी संसाधन हमारे पास उपलब्ध हो उसका अच्छी तरह से उपयोग करना ताकि उन संसाधनों से अधिक से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सके।
जैसा कि आप जानते हैं प्रत्येक उपक्रम में उत्पादन के साधन सीमित मात्रा में होते हैं उत्पादन के साधन जैसे श्रम पूंजी माल मशीन आदि। प्रबंध को चाहिए कि इन सीमित साधनों का कुशलता में उपयग करते हुए लागतो को नियंत्रित करना होता है प्रबंध का हमेशा यह लक्ष्य होना चाहिए की वर्तमान समय में प्रतियोगिता बाजार में बहुत ज्यादा जिस से क्या होगा यदि प्रबंध उपलब्ध साधनों का अनुकूलतम उपयोग नहीं कर पाएगा तो। ऐसी स्थिति में उपक्रम धराशाई हो जाएगा अर्थात बाजार में उपस्थित प्रतियोगिता के सामने अधिक तथा अनियंत्रित लगने वली संस्था ज्यादा दिन तक टिक नहीं सकती है।
प्रबंध का हमेशा यह लक्ष होना चाहिए कि कम साधनों के उपयोग से एक श्रेष्ठ योजना बनाएं बनाएं और उन्हें भिन्न-भिन्न कामों में जरूरत और उपयोगिता के अनुसार बांट दें साधनों की उचित बंटवारे पर ही साधनों का अनुकूलतम उपयोग संभव नहीं है बल्कि उन पर पूरा पूरा नियंत्रण भी रखा जाना चाहिए तथा आवश्यकता पड़ने पर उनके प्रयोग में अदला-बदली भी किया जा सके।
*उपलब्ध साधनों का अनुकूलतम उपयोग करना
*भिन्न-भिन्न व्यक्तियों की क्रियाओं में सामंजस्य स्थापित करना
*बाह्य जगत के साथ समन्वय स्थापित करना।
*संगठन और व्यक्तियों का एकीकरण सुनिश्चित करना।
*उपलब्ध साधनों का अनुकूलतम उपयोग करना- उपलब्ध साधनों का अनुकूलतम उपयोग करना का अर्थ है कि जो भी संसाधन हमारे पास उपलब्ध हो उसका अच्छी तरह से उपयोग करना ताकि उन संसाधनों से अधिक से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सके।
जैसा कि आप जानते हैं प्रत्येक उपक्रम में उत्पादन के साधन सीमित मात्रा में होते हैं उत्पादन के साधन जैसे श्रम पूंजी माल मशीन आदि। प्रबंध को चाहिए कि इन सीमित साधनों का कुशलता में उपयग करते हुए लागतो को नियंत्रित करना होता है प्रबंध का हमेशा यह लक्ष्य होना चाहिए की वर्तमान समय में प्रतियोगिता बाजार में बहुत ज्यादा जिस से क्या होगा यदि प्रबंध उपलब्ध साधनों का अनुकूलतम उपयोग नहीं कर पाएगा तो। ऐसी स्थिति में उपक्रम धराशाई हो जाएगा अर्थात बाजार में उपस्थित प्रतियोगिता के सामने अधिक तथा अनियंत्रित लगने वली संस्था ज्यादा दिन तक टिक नहीं सकती है।
प्रबंध का हमेशा यह लक्ष होना चाहिए कि कम साधनों के उपयोग से एक श्रेष्ठ योजना बनाएं बनाएं और उन्हें भिन्न-भिन्न कामों में जरूरत और उपयोगिता के अनुसार बांट दें साधनों की उचित बंटवारे पर ही साधनों का अनुकूलतम उपयोग संभव नहीं है बल्कि उन पर पूरा पूरा नियंत्रण भी रखा जाना चाहिए तथा आवश्यकता पड़ने पर उनके प्रयोग में अदला-बदली भी किया जा सके।
*भिन्न-भिन्न व्यक्तियों की क्रियाओं में सामंजस्य स्थापित करना-
भिन्न-भिन्न व्यक्तियों की क्रियाओं में सामंजस्य स्थापित करने का अर्थ है किकी विभिन्न व्यक्तियों के मध्य समन्वय का वातावरण बनाकर उनसे आवश्यकता अनुसार कार्य करवाया जाए।
जैसा कि आप जानते हैं किस सभी व्यक्तियों का अपना अलग-अलग विचार होता है अलग-अलग कार्य करने की शैली होती है ऐसी स्थिति में अगर उनके बीच सामंजस्य स्थापित ना किया जाए तो प्रत्येक व्यक्ति यह चाहेगा क्यों आसान से आसान काम करें और अपनी मर्जी से काम करें ऐसी स्थिति में उपक्रम असफलता की ओर अग्रसर हो जाएगा अर्थात यह कहा जा सकता है की प्रबंध का दूसरा उद्देश्य विभिन्न व्यक्तियों के प्रयासों में सामंजस्य स्थापित करना है यदि इन समूहों में प्रबंधक ना हो तो सभी लोग अपनी मनमानी करने लगेंगे और सामूहिक प्रयास शक्ति का साधन होने के स्थान पर विघटन का कारण बन जाएगा क्योंकि एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति के काम से कोई तालमेल नहीं रहेगा।
*बाह्य जगत के साथ समन्वय स्थापित करना।- वाह जगत के साथ समन्वय स्थापित करना का अर्थ है कि बाहरी लोगों के साथ तालमेल बनाना जैसा कि आप जानते हैं किसी भी उपक्रम या संस्था की सफलता केवल उसके आंतरिक मानवीय तथा भौतिक साधनों पर ही निर्भर नहीं रहता क्योंकि किसी भी उपक्रम का उद्देश्य अत्यधिक लाभ कमाना होता है ऐसी स्थिति में बाहरी लोगों के साथ भी इनका व्यवहार विशेष भूमिका अदा करता है अतः इन बाहरी लोगों के साथ समन्वय स्थापित करना भी आवश्यक है।
अर्थात यह कहा जा सकता है कि प्रबंध का उद्देश्य अनिश्चित होता है और वह शुरू से लेकर अंत तक की क्रियाओं में सहभागिता स्थापित करता है अर्थात उत्पादन से लेकर के विक्रय तक की क्रियाओं में प्रबंध की मुख्य भूमिका होती है।
*संगठन और व्यक्तियों का एकीकरण सुनिश्चित करना-
संगठनों और व्यक्तियों का एकीकरण सुनिश्चित करने में संगठन और व्यक्ति तथा एकीकरण तीनों अलग-अलग शब्द है और तीनों का अलग-अलग अर्थ है संगठन का अर्थ होता है कि जहां पर व्यक्तियों का ऐसा समूह जो सामूहिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए काम करें उसे संगठन कहते हैं।
व्यक्तियों से आशय मानव संसाधन से हैं जो आपसी सहयोग से कार्य करते हैं और एक संगठन का रूप लेता है।
करण से आशय कि किसी भी संगठन में व्यक्तियों का जो समूह हो सबके मत एक जैसे हो और काम की शैली भले ही अलग-अलग हो सब के कार्य भी अलग-अलग हो परंतु उद्देश्य एक ही है।
इसमें प्रबंध का मुख्य उद्देश्य होता है की सभी व्यक्तियों के हितों में समन्वय स्थापित करना तथा व्यक्तियों में आपस में टकराव की स्थिति ना हो उससे निपटने के लिए व परिणाम स्वरूप सहयोग का वातावरण बना रहे प्रबंध का मुख्य उद्देश्य यही होता है। अर्थात यह कहा जा सकता है कि प्रबंध संगठन और व्यक्तियों का एकीकरण सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाता है।
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