बौद्ध स्तूप
स्तूप के विषय में आप या सुने होंगे कि सारनाथ का स्तूप सां,का स्तूप ,अमरावती स्तूप ,भरहुत का स्तूप, जोबौद्ध धर्म का है यह भी सुने होंगे आप कि इस स्तूप में गौतम बुद्ध जी की अस्थियों को रखा गया है इससे आप अनुमान लगा सकते हैं की स्तूप के अंदर किसी मृत शरीर की हस्तियों को रखने के लिए किया जाता था।
स्तूप, का तात्पर्य किसी वस्तु का ढेर अथवा अथवा से होता है स्तूप का प्रारंभिक उल्लेख ऋग्वेद में प्राप्त होता है स्तूप का विकास संभवत मिट्टी के ऐसे चबूतरे से हुआ जिसका निर्माण मृतक के ऊपर अथवा मृतक की चुनी हुई अस्थियों को रखने के लिए किया जाता था।
महात्मा बुद्ध की मृत्यु के उपरांत उनकी अस्थि अवशेषों पर 8 स्तूपो का निर्माण हुआ था, जिनका निर्माण अजातशत्रु तथा अन्य गणराज्य ने कराया था कालांतर में मौर्य सम्राट अशोक महान ने 84000 स्तूपो का निर्माण अपने साम्राज्य के विभिन्न भागों में कराया था।
स्तूपो में भरहुत का स्तूप सर्वाधिक प्राचीन है। ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में निर्मित यह स्तूप मध्यप्रदेश में सतना के समीप स्थित था जिसकी खोज अट्ठारह से 73 ईसवी में अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी।
सांची स्तूप सभी स््त््तू। स्तूपो में सबसे विशाल और श्रेष्ठ है इसका निर्माण मौर्य सम्राट अशोक ने कराया था यह स्तूप रायसेन मध्य प्रदेश के समीप है इस स्तूप के उत्खनन में सारिपुत्र के अवशेष प्राप्त हुए थे।
अमरावती स्तूप आंध्र प्रदेश के गुंटूर जनपद में कृष्णा नदी के तट पर स्थित हैं यह द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व में निर्मित हुआ था अमरावती स्तूप का प्राचीन नाम धान्य कटक था इसका निर्माण धनी को और श्रेणी प्रमुखों के अनुदान ओं द्वारा श्वेत संगमरमर से कराया गया था धमेख स्तूप जिसे सारनाथ में गुप्त सम्राटों ने निर्मित कराया था ईटों द्वारा धरातल पर बना है।
चैत्य गृह का निर्माण बौद्ध पास कौन हेतु बु के प्रतीक के रूप में पूजा हेतु किया जाता था चैत्य का अर्थ एक पवित्र कच्छ होता थाजिसके मध्य में एक छोटा सा स्तूप होता था जिससे दागों के नाम से जाना जाता था जिसकी पूजा की जाती थी
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