विनिमय के मुख्यतः दो प्रकार का होता है-
1-वस्तु विनिमय
2-मुद्रा विनिमय
1-वस्तु विनिमय-
वस्तु विनिमय के अंतर्गत मनुष्य अपनी सेवाओं का आदान-प्रदान बिना किसीी माध्यम के करता हैै। तो इसे वस्तु विनिमय कहते हैं।
जैसे राजू के पास चना है और उसे चावल चाहिए तथा एक दूसरे व्यक्ति मोहन के पास चावल है और उसे चना चाहिए राजू मोहन आपस में चना और चावल का आदान प्रदान कर लेते हैं वस्तु का यह आदान-प्रदान नहीं बस 2 दिन में कहलाता है।
अर्थात यह कहां जा सकता है कि वस्तु के अदला-बदली को वस्तु विनिमय में कहते हैं।
2-मुद्रा विनिमय-जब विनिमय का कार्य मुद्रा के माध्यम से किया जाए तो इसे मुद्रा विनिमय कहते हैं।
अर्थात यह कहा जा सकता है कि मुद्रा विनिमय में वस्तुओं या सेवाओं का अदला बदली ना करके क्रय विक्रय किया जाता है जिसका मुख्य भूमिका मुद्रा करती है।
जैसे कृष्णा के पास ₹500 है और उसे बाजार से सामान लेना है। तो वह किसी भी दुकान पर जाकर ₹500 दे कर के दाल ले सकता है इसमें वस्तु के बदले वस्तु की आवश्यकता नहीं होती है।
वस्तु विनिमय का अर्थ एवं परिभाषा
वस्तु विनिमय का अर्थ-वस्तु विनिमय एक ऐसी प्रणाली है जिसमें 2 पक्ष होते हैं। दोनों को अपनी आवश्यकताओं की वस्तुओं की आवश्यकता होती है और उन्हीं वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए एक दूसरे से आवश्यकतानुसार वस्तुओं का अदला बदली करते हैं इस अदला-बदली को वस्तु विनिमय कहते हैं। यह हस्तांतरण जो होता है ऐच्छिक होता है। और मुद्रा विहीन होता है अर्थात इसमें मुद्रा का कोई प्रयोग नहीं होता है जैसे किसी को अपने चावल के बदले में किसी दूसरे व्यक्ति से आलू लेना है तो इस प्रक्रिया में आलू वाले को चावल दे करके उससे आलू ले लिया जाता है। तू इसे वस्तु विनिमय के अंतर्गत कहां जाता है।
एस. एफ.थामस के अनुसार-"एक वस्तु से दूसरी वस्तु की सीधी अदल बदल ही वस्तु विनिमय कहलाती है"।
वस्तु विनिमय के लाभ
वस्तु विनिमय प्रणाली के निम्नलिखित लाभ हैं
*विनिमय का सरल साधन
*आपसी सहयोग की भावना
*दोनों पक्षों को लाभ
*कार्य कुशलता में वृद्धि
*अधिकतम संतुष्टि आदि।
विनिमय का सरल साधन- वस्तु
विनिमय का प्रयोग एक शिक्षित व्यक्ति भी स्कोर कर सकता है इसमें वह अपनी आवश्यकता की वस्तु को निश्चित मात्रा में प्राप्त कर सकता है। तथा वस्तु विनिमय में हिसाब किताब करने तथा लिखा पढ़ी करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है इसलिए यह विनिमय का सरल साधन है।
आपसी सहयोग की भावना-
वस्तु विनिमय में लोगों को एक दूसरे की वस्तुओं की आवश्यकता होती है ऐसी स्थिति में प्रत्येक व्यक्ति को एक दूसरे से कार्य पड़ता है इसलिए वस्तु विनिमय के द्वारा पारस्परिक सहयोग और प्रेम की भावना का विकास होता है अतः यह कहा जा सकता है कि वस्तु विनिमय प्रक्रिया के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति आत्मनिर्भर नहीं होता है जिसके कारण लोगों को एक दूसरे की आवश्यकता पड़ती है जिससे लोगों में आपसी सहयोग की भावना पैदा होती है।
दोनों पक्षों को लाभ-
वस्तु विनिमय प्रणाली के अंतर्गत दोनों पक्षों को उच्च कोटि की संतुष्टि प्राप्त होती है चूंकिदोनों पक्षों द्वारा अपने कम उपयोग की वस्तुओं को एक दूसरे से अदला-बदली करके अपनी अधिकतम अवस्कताओं की वस्तुओं की प्राप्ति की जाती हैं।
कार्य कुशलता में वृद्धि-
वस्तु विनिमय प्रक्रिया के अंतर्गत कार्य कुशलता में वृद्धि होती है । ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वस्तु विनिमय प्रणाली में श्रम विभाजन हो जाता है जिससे प्रत्येक व्यक्ति किसी विशेष वस्तु के उत्पादन में विशेष योग्यता प्राप्त कर लेता है जिससे उस वस्तु के उत्पादन में उसकी कार्य कुशलता में वृद्धि हो जाती है और कार्यकुशलता में वृद्धि होने के कारण अच्छी किस्म की वस्तुओं का उत्पादन भी होता है।
अधिकतम संतुष्टि-
वस्तु विनिमय प्रणाली के अंतर्गत क्रय विक्रय की आवश्यकता नहीं होती है जिससे जिससे यहां लोगों को अपने कम आवश्यकता की वस्तुओं को दे कर के अधिकतम आवश्यकता ओं की वस्तुओं को प्राप्त करना होता है जिसके कारण यहां पर एक दूसरे को अधिकतम संतुष्टि प्राप्त होती है क्योंकि वह एक दूसरे से कम उपभोग की वस्तु देकर के अधिकतम उपभोग की वस्तु प्राप्त करते हैं।
The exchange is mainly two types - 1-barter exchange exchange 1 - Under the exchange exchange, humans do any medium without exchange of their services. So it is called an object exchange. Like Raju has gram and he wants rice and a second person is rice near Mohan and he should do it in Raju Mohan interconnect, but it is not exchanged in the item. That is, where it can be said that the exchange of the object is called in the inventory. 2-currency exchange - When the exchange of exchange is done through the currency, it is called currency exchange. That is, it can be said that the purchase of goods or services in currency exchange is done, whose main role is done. Like Krishna has ₹ 500 and it has to take stuff from the market. So he can go to any store and give the pulse of giving 500 to it, it does not require the object instead of the object.
1-वस्तु विनिमय
2-मुद्रा विनिमय
1-वस्तु विनिमय-
वस्तु विनिमय के अंतर्गत मनुष्य अपनी सेवाओं का आदान-प्रदान बिना किसीी माध्यम के करता हैै। तो इसे वस्तु विनिमय कहते हैं।
जैसे राजू के पास चना है और उसे चावल चाहिए तथा एक दूसरे व्यक्ति मोहन के पास चावल है और उसे चना चाहिए राजू मोहन आपस में चना और चावल का आदान प्रदान कर लेते हैं वस्तु का यह आदान-प्रदान नहीं बस 2 दिन में कहलाता है।
अर्थात यह कहां जा सकता है कि वस्तु के अदला-बदली को वस्तु विनिमय में कहते हैं।
2-मुद्रा विनिमय-जब विनिमय का कार्य मुद्रा के माध्यम से किया जाए तो इसे मुद्रा विनिमय कहते हैं।
अर्थात यह कहा जा सकता है कि मुद्रा विनिमय में वस्तुओं या सेवाओं का अदला बदली ना करके क्रय विक्रय किया जाता है जिसका मुख्य भूमिका मुद्रा करती है।
जैसे कृष्णा के पास ₹500 है और उसे बाजार से सामान लेना है। तो वह किसी भी दुकान पर जाकर ₹500 दे कर के दाल ले सकता है इसमें वस्तु के बदले वस्तु की आवश्यकता नहीं होती है।
वस्तु विनिमय का अर्थ एवं परिभाषा
वस्तु विनिमय का अर्थ-वस्तु विनिमय एक ऐसी प्रणाली है जिसमें 2 पक्ष होते हैं। दोनों को अपनी आवश्यकताओं की वस्तुओं की आवश्यकता होती है और उन्हीं वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए एक दूसरे से आवश्यकतानुसार वस्तुओं का अदला बदली करते हैं इस अदला-बदली को वस्तु विनिमय कहते हैं। यह हस्तांतरण जो होता है ऐच्छिक होता है। और मुद्रा विहीन होता है अर्थात इसमें मुद्रा का कोई प्रयोग नहीं होता है जैसे किसी को अपने चावल के बदले में किसी दूसरे व्यक्ति से आलू लेना है तो इस प्रक्रिया में आलू वाले को चावल दे करके उससे आलू ले लिया जाता है। तू इसे वस्तु विनिमय के अंतर्गत कहां जाता है।
एस. एफ.थामस के अनुसार-"एक वस्तु से दूसरी वस्तु की सीधी अदल बदल ही वस्तु विनिमय कहलाती है"।
वस्तु विनिमय के लाभ
वस्तु विनिमय प्रणाली के निम्नलिखित लाभ हैं
*विनिमय का सरल साधन
*आपसी सहयोग की भावना
*दोनों पक्षों को लाभ
*कार्य कुशलता में वृद्धि
*अधिकतम संतुष्टि आदि।
विनिमय का सरल साधन- वस्तु
विनिमय का प्रयोग एक शिक्षित व्यक्ति भी स्कोर कर सकता है इसमें वह अपनी आवश्यकता की वस्तु को निश्चित मात्रा में प्राप्त कर सकता है। तथा वस्तु विनिमय में हिसाब किताब करने तथा लिखा पढ़ी करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है इसलिए यह विनिमय का सरल साधन है।
आपसी सहयोग की भावना-
वस्तु विनिमय में लोगों को एक दूसरे की वस्तुओं की आवश्यकता होती है ऐसी स्थिति में प्रत्येक व्यक्ति को एक दूसरे से कार्य पड़ता है इसलिए वस्तु विनिमय के द्वारा पारस्परिक सहयोग और प्रेम की भावना का विकास होता है अतः यह कहा जा सकता है कि वस्तु विनिमय प्रक्रिया के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति आत्मनिर्भर नहीं होता है जिसके कारण लोगों को एक दूसरे की आवश्यकता पड़ती है जिससे लोगों में आपसी सहयोग की भावना पैदा होती है।
दोनों पक्षों को लाभ-
वस्तु विनिमय प्रणाली के अंतर्गत दोनों पक्षों को उच्च कोटि की संतुष्टि प्राप्त होती है चूंकिदोनों पक्षों द्वारा अपने कम उपयोग की वस्तुओं को एक दूसरे से अदला-बदली करके अपनी अधिकतम अवस्कताओं की वस्तुओं की प्राप्ति की जाती हैं।
कार्य कुशलता में वृद्धि-
वस्तु विनिमय प्रक्रिया के अंतर्गत कार्य कुशलता में वृद्धि होती है । ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वस्तु विनिमय प्रणाली में श्रम विभाजन हो जाता है जिससे प्रत्येक व्यक्ति किसी विशेष वस्तु के उत्पादन में विशेष योग्यता प्राप्त कर लेता है जिससे उस वस्तु के उत्पादन में उसकी कार्य कुशलता में वृद्धि हो जाती है और कार्यकुशलता में वृद्धि होने के कारण अच्छी किस्म की वस्तुओं का उत्पादन भी होता है।
अधिकतम संतुष्टि-
वस्तु विनिमय प्रणाली के अंतर्गत क्रय विक्रय की आवश्यकता नहीं होती है जिससे जिससे यहां लोगों को अपने कम आवश्यकता की वस्तुओं को दे कर के अधिकतम आवश्यकता ओं की वस्तुओं को प्राप्त करना होता है जिसके कारण यहां पर एक दूसरे को अधिकतम संतुष्टि प्राप्त होती है क्योंकि वह एक दूसरे से कम उपभोग की वस्तु देकर के अधिकतम उपभोग की वस्तु प्राप्त करते हैं।
The exchange is mainly two types - 1-barter exchange exchange 1 - Under the exchange exchange, humans do any medium without exchange of their services. So it is called an object exchange. Like Raju has gram and he wants rice and a second person is rice near Mohan and he should do it in Raju Mohan interconnect, but it is not exchanged in the item. That is, where it can be said that the exchange of the object is called in the inventory. 2-currency exchange - When the exchange of exchange is done through the currency, it is called currency exchange. That is, it can be said that the purchase of goods or services in currency exchange is done, whose main role is done. Like Krishna has ₹ 500 and it has to take stuff from the market. So he can go to any store and give the pulse of giving 500 to it, it does not require the object instead of the object.
thanks for comment