गलवान नदी काराकोरम की पहाड़ियों की श्रेणियों से निकलती है और चीन से होते हुए लद्दाख के श्योक नदी में मिल जाती है. गलवानी नदी करीब 80 किलोमीटर लंबी है। 2001 में 'सर्वेंट्स औफ साहिबस' किताब में अंग्रेजों के एक खास नौकर का जिक्र मिलता है. जिसके मुताबिक गलवान इलाके की खोज करनेवाले गुलाम रसूल गलवान थे. जिनके नाम पर लद्दाख के उत्तर पूर्व इलाके का नाम पड़ा. अब आपको यह जानकारी हो गई होगी कि इसका नाम कलवार घाटी क्यों पड़ा।
गलवान घाटी चीन और भारत दोनों देशों के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
गलवान घाटी विवादित क्षेत्र अक्साई चिन में है. गलवान घाटी लद्दाख और अक्साई चिन के बीच भारत-चीन सीमा के नज़दीक स्थित है. यहां पर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) अक्साई चिन को भारत से अलग करती है.
अक्साई चिन पर भारत और चीन दोनों अपना दावा करते हैं. यह घाटी चीन के दक्षिणी शिनजियांग और भारत के लद्दाख तक फैली है. ये क्षेत्र भारत के लिए सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये पाकिस्तान, चीन के शिनजियांग और लद्दाख की सीमा के साथ लगा हुआ है.
1962 की जंग के दौरान भी गालवन नदी का यह क्षेत्र जंग का प्रमुख केंद्र रहा था. इस घाटी के दोनों तरफ के पहाड़ रणनीतिक रूप से सेना को एडवांटेज देते हैं. यहां जून की गर्मी में भी तापमान शून्य डिग्री से कम होता है.
इतिहासकारों की मानें तो इस जगह का नाम एक साधारण से लद्दाखी व्यक्ति गुलाम रसूल गलवान के नाम पर पड़ा. ये गुलाम रसूल ही थे जिन्होंने इस जगह की खोज की थी.
भारत की तरफ़ से दावा किया जाता है कि गलवान घाटी में अपने इलाके में भारत सड़क बना रहा है जिसे रोकने के लिए चीन ने यह हरकत की है.
दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी रोड भारत को इस पूरे इलाके में बड़ा एडवांटेज देगी. यह रोड काराकोरम पास के नजदीक तैनात जवानों तक सप्लाई पहुंचाने के लिए बेहद अहम है.
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