बाल विकास के सिद्धांत के अंतर्गत बालक के विकास के उसके व्यक्तिगत विकास की तथा एक निश्चित प्रतिरूप का और समान परिजात के विकास के प्रति मानव में समानता का उसके बंस का आदि का वर्णन किया जाता है
बाल विकास के सिद्धांत निम्नलिखित हैं-
बाल विकास के सिद्धांत निम्नलिखित हैं-
निरंतरता का सिद्धांत-
इस सिद्धांत के अनुसार विकास की प्रक्रिया निरंतर अब रामगढ़ से चलती रहती है कभी यह मंद गति से चलती है तो कभी यह तीव्र गति से चलती है इसलिए इसे निरंतरता का सिद्धांत कहा जाता है।
व्यक्तिगतता का सिद्धांत-
इस सिद्धांत के अंतर्गत भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के विकास की गति और दिशा भिन्न-भिन्न होती है अर्थात यह कहा जा सकता है कि किसी के विकास में तीव्रता होती हैं किसी के विकास में थोड़ी कम तीव्रता होती है इसका असर वंश के ऊपर भी निर्भर करता है इसलिए इसे व्यक्तिगतता का सिद्धांत कहते हैं।
परिमार्जितता का सिद्धांत Principle of finiteness
इस सिद्धांत के अंतर्गत प्रयासों के द्वारा विकास की गति को वांछित दिशा की ओर तथा तीव्र गति से प्रमुख किया जा सकता है इसके बारे में अध्ययन किया जाता है।
निश्चित तथा पूर्व कथनीय प्रतिरूप का सिद्धांत
प्रत्येक प्रजाति चाहे वापस पर जाते हो अथवा मानव प्रजाति के विकास का एक निश्चित प्रतिरूप होता है जो उस प्रजाति के समस्त सदस्यों के लिए सामान्य होता है तथा उस पर जाति के समस्त सदस्य उस प्रतिरूप का अनुसरण करते हैं।
समान प्रतिमान का सिद्धांत-
इस सिद्धांत के अंतर्गत समान प्रजाति के विकास के प्रतिमान में समानता पाई जाती हैं।
समन्वय का सिद्धांत-
समन्वय का अर्थ होता है कि दो या दो से अधिक व्यक्तियों अंगों के बीच एक निश्चित : समान रूप से मिलना।, इस प्रकार मिलना कि एक इकाई बन जाय। -अर्थात बाल विकास सिद्धांत के अंतर्गत समन्वय का सिद्धांत का अर्थ है कि बालक के विभिन्न अंगों के विकास में परस्पर समन्वय रहता है बालक अपने संपूर्ण अंगों को तथा फिर उस अंग के विभिन्न भागों को चलाना सीखता है तत्पश्चात वह इन समस्त भागों में समन्वय स्थापित करना सीखता है जब तक शरीर के विभिन्न अंगों तथा उनके भागों के बीच समन्वय स्थापित नहीं होता है तब तक उचित विकास नहीं हो पाता है।
वंशानुक्रम तथा वातावरण के अंतः क्रिया का सिद्धांत
जैसे कि आप जानते हैं वंशानुक्रम का अर्थ होता है कि जो एक वंश से दूसरे वंश में चले अर्थात अगर किसी के पिता को कोई रोग था तो वह उसके बच्चों में भी जाता है अर्थात अगर किसी का पिता छोटे थे तो उनके बच्चे भी छोटे होंगे।
अब तक वंशानुक्रम तथा वातावरण के अंतः क्रिया के सिद्धांत के अंतर्गत बालक का विकास वंशानुक्रम तथा वातावरण की परस्पर अंतः क्रिया का परिणाम होता है।केवल वंशानुक्रम अथवा केवल वातावरण बालक के विकास की दिशा और गति को निर्धारित नहीं करते हैं वरन दोनों की अंतः क्रिया के द्वारा विकास की दिशा एवं गत का नियंत्रण होता है।
चक्राकर प्रगति का सिद्धांत-Circular theory of progress,
जैसा कि लिखा है चक्र कार्य प्रगत का सिद्धांत अंग्रेजी में लिखा है सर्कुलर थ्योरी ऑफ प्रोग्रेस अर्थात सर्कुलर का मतलब होता है गोला यानी एक सर्किल जो गोल-गोल घूमता है अर्थात यह कहा जा सकता है कि चक्र का प्रगति का सिद्धांत का अर्थ है कि विकास प्रक्रिया के दौरान बीच-बीच में ऐसे अवसर आते हैं जब कि किसी क्षेत्र विशेष में विकास की पूर्व अर्जित स्थित का समय ऑन करने के लिए उस क्षेत्र की विकास प्रक्रिया लगभग विराम की स्थिति में आ जाती है कुछ अवधि के उपरांत उस क्षेत्र में विकास की गति फिर बढ़ जाती है अर्थात उपरोक्त पंक्तियों को पढ़ने के बाद यह कहा जा सकता है कि चकराकार अर्थ हुआ कि कोई चीज खत्म होती है फिर शुरू हो जाती हो।
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