क -98 . बाग भूमि और जलमग्न भूमि
( स्तम्भ 18 और 19 ) –
( 1 ) किसी ग्राम में किसी भूमि के विशेष टुकड़ों पर लगे हुए पेड़ उसी दशा में बाग के रूप में लिखे जायेंगे जब वे उस भूमि पर इतनी संख्या में लगा दिये गये हों , कि उनके कारण या जब वे पूरे - पूरे तैयार हो जायेंगे तो उनके कारण वे भूमि या उसका कोई बड़ा भाग मुख्यतः किसी और काम में न लाया जा सके ।
( 2 ) अच्छी किस्म ( उन्नत प्रकार ) के आम के पेड़ों या दूसरे फल वाले पेड़ों के बागों को , जो चाहे तुख्मी हों या कल्मी , केवल उनके फलों के लिए लगाये जाते हैं , दूसरे बागों से अलग करने के लिए स्तम्भ 18 में शब्द " बाग " के पहले शब्द " कल्मी " बढ़ा दिया जायेगा । ऐसे बागों को कृषित ( cultivated ) के रूप में दिखलाया जायेगा और क्षेत्र उस स्तम्भ 19 में दर्ज नहीं किया जायेगा , जिसमें शब्द " कृषित " ( cultivated ) होगा । फल की किस्म तथा क्षेत्र , स्तम्भ 7 से 15 तक में , जैसा कि उपयुक्त हो , दर्ज किये जायेंगे । "
( 3 ) ऐसी भूमि को जो पहले बाग भूमि थी जिसे बोये गये क्षेत्र ( sown ) में नहीं शामिल किया गया , किन्तु अब उस पर पेड़ नहीं है और खेती की जाती है कृषित ( खेती - पाती के ) क्षेत्रफल के अन्तर्गत दिखाना चाहिए ।
( 4 ) जब किसी बाग के जिसे बोये गये क्षेत्र ( sown ) में नहीं शामिल किया गया , पेड़ों के बीच में कोई फसल बोई गई हो तो शब्द " बाग " स्तम्भ 18 में लिखा जायेगा ; किन्तु क्षेत्रफल स्तम्भ 19 में नहीं दिखाया जायेगा । उसमें केवल शब्द " कृषित " ( cultivated ) ही लिखा जायेगा और बोई हुई फसल और उसका क्षेत्रफल 7 से 15 तक के स्तम्भों में से किन्हीं उपयुक्त स्तम्भों में दिखाये जायेंगे । इसी प्रकार जब किसी जलमग्न भूमि पर सिंघाड़ा बोया गया हो तो शब्द " जलमग्न " स्तम्भ 18 में और शब्द " कृषित " स्तम्भ 19 में लिखे जाने चाहिए । फसल और उसका क्षेत्रफल स्तम्भ 7 से 9 तक में लिखे जाने चाहिए ।
" स्पष्टीकरण- ( 1 ) पेड़ों में बांस की कोठियाँ सम्मिलित हैं । ( 2 ) ऐसी भूमि जिस पर चाय के पौधे , गुलाब की झाड़ियाँ , पान की बेलें , केला और पपीता जैसी फसलें हों , परिलेख में कृषि भूमि के रूप में दिखाई जायेंगी । टिप्पणी- ऐसी भूमि के सम्बन्ध में , जो बाग भूमि न रही हो , लेखपाल को परिच्छेद क -100 के निदेशों पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिये ।
-98. Orchard land and submerged land (columns 18 and 19) – (1) Trees planted on particular pieces of land in a village shall be described as orchards only if they have been planted on that land in such numbers that Due to them or when they are completely ready, due to them that land or a large part of it cannot be used mainly for any other purpose. (2) In order to distinguish from other orchards of good quality mango trees or other fruit trees, whether tukhmi or kalmi, planted only for their fruits, in column 18, the words " The words "Kalmi" before "Bagh" shall be added. Such gardens will be shown as cultivated and the area will not be entered in column 19 which will contain the word "cultivated". The variety and region of the fruit shall be entered in columns 7 to 15, as appropriate. "(3) Such land which was formerly garden land, which is not included in the sown area, but now has no trees and is cultivated, should be shown under the area under cultivation. (4) When a crop has been sown among the trees of an orchard which is not included in the area sown, the word "orchard" shall be entered in column 18, but the area shall not be shown in column 19. Only the word "cultivated" shall be written and the crop sown and its area shall be shown in any of the appropriate columns from columns 7 to 15. Similarly, when water chestnut has been sown on waterlogged land, the word "submerged" shall be entered in the column. 18 and the word "cultivated" should be written in column 19. The crop and its area should be written in columns 7 to 9." Explanation- (1) Trees include bamboo shoots. (2) The land having crops like tea tree, rose bushes, betel vine, banana and papaya shall be shown as agricultural land in the deed. Note- In respect of such land which has ceased to be garden land, the Lekhpal should pay special attention to the instructions of paragraph A-100.
thanks for comment