प्रश्न 1. नामान्तरण से क्या तात्पर्य है । यह किन आधारों पर किया जाता है । उदाहरण सहित समझाइये ।
उत्तर - स्वत्व के भूलेखों में अंकित व्यक्ति के नाम स्थान पर अन्य व्यक्ति का नाम अंकित करने की प्रक्रिया को नामान्तरण कहते हैं ।
नामान्तरण की कार्यवाही उ ० प्र ० भू ० रा ० अधि ० की धारा 33 क व 34 तथा 35 के अन्तर्गत की जाती है ।
नामान्तरण हेतु जव उत्तराधिकारी या आवंटी को यह ज्ञात हो कि उसका नाम राजस्व निरीक्षक द्वारा प ० क -11 के द्वारा अंकित नहीं किया गया है । तो उसके द्वारा नामान्तरण का प्रार्थना पत्र सम्बन्धित तहसील के तहसीलदार को दिया जायेगा ।
अन्य मामलों में अन्तरण प्राप्त कंर्ता वसीयत प्राप्त कर्ता द्वारा प्रार्थना पत्र दिया जावेगा । नामान्तरण के प्रार्थना पत्र लेखपाल द्वारा भी अपनी वेतन तिथि पर दिये जाते हैं ।.
नामान्तरण के प्रार्थना पत्र में उत्तराधिकार वसीयत आवंटन में भूमि पाने वाले अथवा अन्तरण के आधार पर अधिकार पाने वाले व जिसके नाम के स्थान पर नामान्तरण चाहा जा रहा है । उसका नाम पिता का नाम निवास स्थान सम्बन्धित खाता संख्या गाटा संख्या क्षेत्रफल भूराजस्व तथा ग्राम का विवरण व अन्तरण या मृतक होने की तिथि तथा अन्तरण का प्रकार अंकित किया जायेगा । इस प्रार्थना पत्र के साथ अद्यचावधिक उद्धरण खतौनी तथा उ ० प्र ० वि ० व भूमि व्यवस्था अधि ० की धारा 154 के अन्तर्गत वांछित शपथ पत्र और अन्तरण का अभिलेख भी दिया जाना आवश्यक है । नामान्तरण का प्रार्थना पत्र या लेखपाल की रिपोर्ट प्राप्त होने पर तहसीलदार के आदेश से उसे तहसीलदार या नायब तहसीलदार के न्यायालय में अंकित करके सम्बन्धित पीठासीन अधिकारी के सतिथि हस्ताक्षर व सील के साथ नामान्तरण प्रार्थना पत्र में अंकित तथ्यों के आधार पर कम से कम 30 दिन की अवधि के लिए घोषणा पत्र ( इश्तहार ) सम्बन्धित पक्षों भूमि प्रबन्धक समिति व आवश्यक होने पर सह जोतदार को निःशुल्क रुप से जारी किया जावेगा । जिसकी तामील नियमानुसार की जावेगी । घोषणा पत्र की तामील होकर बाप आने पर यदि कोई आपत्ति नहीं आती है या यदि आपत्ति आती है तो आवश्यकतानुसार पक्षों में लिखित मौखिक साक्ष्यों को लेकर गुण अवगुण के आधार पर नामान्तरण आदेश पारित कर दिया जावेगा । और उसका क्रियान्वयन नामान्तरण पंजी के माध्यम से लेखपाल की खतौनी में करा दिया जायेगा । उत्तराधिकार या वसीयत के मामलों को छोड़कर यदि अन्य मामलों में नामान्तरण प्रार्थना पत्र नामान्तरण की तिथि से तीन माह बाद दिया गया है । तो उ ० प्र ० भू ० अधि ० की धारा 37 के अनुसार उ ० प्र ० राजस्व न्यायालय नियमावली में दिये गये नियमों के अधीन नामान्तरण अर्थदण्ड निर्धारित किया जावेगा । तो अन्तरिती से नियमानुसार वसूल किया जायेगा । सम्पूर्ण कार्यवाही के बाद पत्रावली नियमानुसार राजस्व अभिलेखागार में संचित कर दी जायेगी । नामान्तरण के लिए सक्षम अधिकारी निम्न हैं- ( 1 ) निर्विवाद उत्तराधिकार तथा उ ० प्र ० ज ० वि ० व भू ० व्य ० अधि ० की धारा 195 व 197 में किये गये आवंटन के विषय में राजस्व निरीक्षक सक्षम अधिकारी है । ( धारा उ ० प्र ० भूराजस्व अधि ० ) ( 2 ) विक्रय पत्र , दान पत्र , बैनामा , वसीयत विवादित तथा उन उत्तराधिकार के विषय में जिसके प ० क ० 11 कर आदेश नहीं हुआ है तथा अन्य पट्टेदारों के विषय में आदेश तहसीलदार / ना ० तहसीलदार द्वारा उन्हें प्रदत्त अधिकार जाता है । के अन्तर्गत उ ० प्र ० भू राजस्व अधिनियम की धारा 34/35 के अन्तर्गत किया खसरे में इन्द्राज़ - फार्म प -10 ( Non . ZA ) जमींदारी क्षेत्रों में खसरे में . किये गए परिवर्तनों व कब्जे के इन्दराजों की संहत सूची फार्म प -10 पर तीन प्रतियों में लेखपाल तैयार करेगा । एक प्रति खसरे के प्रारम्भ में चस्पा की जावेगी . उस पर इसके उद्धरण जारी करने के प्रमाणस्वरूप खातेदारों के हस्ताक्षर कराए जावेंगे । दूसरी प्रति सुपरवाइजर कानूनगो को तथा तीसरी प्रति भूमि प्रबंधक समिति के अध्यक्ष को दी जावेगी । इसके स्तम्भ 1 से 4 तक लेखपाल खसरे की सहायता से भरेगा । स्तम्भ 5 के पर्यवेक्षक कानूनगो अपनी जांच रिपोर्ट लिखेगा इस सूची के बनाने का उद्देश्य यह है कि सभी खसरे के पर्यवेक्षक कानूनगो को जानकारी में आ जावे तथा वह उनकी शत प्रतिशत जाँच कर सके व सभी प्रभावित व्यक्तियों को परिवर्तित इन्दराजों का ज्ञान कराया जाना सुनिश्चित कर सके । प्रधान को दी जाने वाली प -10 की प्रति से खातेदार ( कृषक ) अपने खेतों के सम्बन्ध में हुए परिवर्तनों का ज्ञान ग्राम में ही कर सकेंगे ।
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