(1 ) भूगोल की प्रकृति ( Nature of Geography ) — भूगोल पृथ्वी के धरातल , इसके स्वरूप , भौतिक लक्षण , राजनीतिक विभाजन , जलवायु , उत्पादन , जनसंख्या , पर्यावरण और उसकी समस्याओं , आदि के अध्ययन का विज्ञान है । धरातल पर निरन्तर परिवर्तन होता रहता है । धरातल पर पाए जाने वाले विभिन्न लक्षणों में गतिशील एवं अनेक प्रकार के जटिल सम्बन्ध पाए जाते हैं । पृथ्वी का धरातल विकासमान , अस्थिर तथा गतिशील है , इसी कारण भूगोल की प्रकृति , उसकी परिभाषा , उद्देश्य व पाठ्य सामग्री आरम्भ से लेकर आज तक परिवर्तनशील रही है । कभी इस विज्ञान को स्थानों का अध्ययन माना गया तो कभी प्रदेशों अथवा राजनीतिक इकाइयों का वर्णन करने वाला अध्ययन माना गया । आज भूगोल को वैज्ञानिक मान्यता प्राप्त है , विद्वानों ने भूगोल को विज्ञान की श्रेणी में रखा है । यूरोप में जर्मनी के और अमरीका के अनेक विश्वविद्यालयों में उन्नीसवीं शताब्दी में अजैव पृथ्वी के स्वरूपों एवं तथ्यों के ज्ञान को ही भूगोल का विषय क्षेत्र माना गया , परन्तु शीघ्र ही जर्मनी और फ्रांस में इस अजैव पृथ्वी अध्ययन के साथ - ही - साथ मानव भूगोल के मानवीय तथ्यों को भी भूगोल के अध्ययन के अन्तर्गत माना जाने लगा । इसमें प्रादेशिक भूगोल का भी नए आधार पर अध्ययन किया जाने लगा । रिटर , हम्बोल्ट और रैटजेल का अनुसरण करते हुए बीसवीं शताब्दी में भूगोल के विभाजन को स्वीकार कर उसकी अनेक शाखाओं का विकास किया गया । सन् 1950 के पश्चात् भूगोल के बहुआयामी एवं विविधतारूपी विकास ने इसकी प्रकृति को प्रभावित किया । इसमें अब ' प्रदेशों एवं स्थानों की समालोचनात्मक व्याख्या , सांख्यिकी एवं स्थूल आरेख , वायु फोटोग्राफी , दूरस्थ संवेदन ( Remote Sensing ) , आचरण भूगोल , तन्त्र संकल्पना , व्यावहारिक भूगोल का सभी क्षेत्रों में उपयोग , आदि भी सम्मिलित किए जाते हैं । वर्तमान में भू - उपग्रह के माध्यम से पृथ्वी के विभिन्न संसाधनों दिशाओं व मौसम का अध्ययन भी किया जाने लगा है । इस प्रकार भूगोल के क्षेत्र में निरन्तर विकास होता जा रहा है ।
( 2 ) भूगोल का उद्देश्य ( Aim of Geography ) — भूगोल विषय के अध्ययन का उद्देश्य जटिल रचना वाले भू - तल सम्बन्धी ज्ञान में वृद्धि करना है । पृथ्वी के धरातल का मानव के निवास के रूप में अध्ययन एवं उसके प्रदेशों के संसाधनों का मानव विकास के लिए अधिकतम उपयोग करने की व्याख्या करना ही उद्देश्य है ।
भूगोल का उद्देश्य ' भूगोल की सम्पूर्णता की भावना से सम्बन्धित है । यद्यपि एक भूगोलवेत्ता किसी एक विशेष अंग की रुचि रखते हुए भी वह पूर्णतः विज्ञान की ओर ही नहीं झुक सकता । उसे अपनी रुचि की भूगोल की विशेष शाखा के विकास के साथ - साथ सम्पूर्ण भूगोल से उसे सह - सम्बन्धित मानने का व्यापक चिन्तन भी हमेशा मस्तिष्क में बनाए रखना पड़ेगा । अभिनव भूगोल में भूगोल की सम्पूर्णता को मानव कल्याण से सम्बन्धित मानते हुए ही उसे पूर्णता की संज्ञा दी जाने लगी है ।
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