स्वर:-
स्वर उन वर्णों को कहते हैं जिनके उच्चारण में भीतर से आने वाली वायु बिना किसी रूकावट के मुख से बाहर निकलती है।
हिंदी के स्वर वर्णों की संख्या 11 है जिन्हें 3 वर्गों में विभक्त किया गया है।
हस्व स्वर-अ ,इ , उ, ऋ
दीर्घ स्वर -आ ,ई ,ऊ
संयुक्त स्वर-ए ,ऐ ,ओ, औ
# हास्व स्वर को बोलने में कम समय लगता है जबकि दीर्घ स्वर के उच्चारण में 2 मात्राओं का समय लगता है ।
#संयुक्त स्वर दो स्वरो के मेल से बनते है।
ऋ का प्रयोग संस्कृत में स्वर के रूप में होता था किंतु हिंदी में स्वर के रूप में यह प्रयुक्त नहीं होता केवल संस्कृत शब्दों में ही रे का प्रयोग हिंदी में होता है। यथा ऋण, ऋग्वेद।
अनुस्वार हिंदी वर्णमाला में अं के रूप में लिखा जाता है यह अनुस्वर के बाद आती है इसलिए इसे अनुस्वर कहा जाता है मूलतः यह व्यंजन है स्वर नहीं संस्कृत में अनुस्वार के स्थान पर पंचम वर्ण प्रत्येक वर्ग का पांचवा वर्ण का प्रयोग होता है किंतु हिंदी में पंच वर्ण के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग स्वीकृत किया जा चुका है ।
जैसे संस्कृत में पञ्च हिंदी रूप में पंच संस्कृत रूप में कण्ठ हिंदी रूप में कंठ आदि।
अनुनासिक को समानता चंद्रबिंदु कहा जाता है और नासिक्य स्वर है जिसका उच्चारण नाक और मुख दोनों से होता है तथा उच्चारण में लघुता रहती है जैसे गांव दांत आगन आदि।
हिंदी के स्वर वर्णों की संख्या 11 है जिन्हें 3 वर्गों में विभक्त किया गया है।
हस्व स्वर-अ ,इ , उ, ऋ
दीर्घ स्वर -आ ,ई ,ऊ
संयुक्त स्वर-ए ,ऐ ,ओ, औ
# हास्व स्वर को बोलने में कम समय लगता है जबकि दीर्घ स्वर के उच्चारण में 2 मात्राओं का समय लगता है ।
#संयुक्त स्वर दो स्वरो के मेल से बनते है।
ऋ का प्रयोग संस्कृत में स्वर के रूप में होता था किंतु हिंदी में स्वर के रूप में यह प्रयुक्त नहीं होता केवल संस्कृत शब्दों में ही रे का प्रयोग हिंदी में होता है। यथा ऋण, ऋग्वेद।
अनुस्वार हिंदी वर्णमाला में अं के रूप में लिखा जाता है यह अनुस्वर के बाद आती है इसलिए इसे अनुस्वर कहा जाता है मूलतः यह व्यंजन है स्वर नहीं संस्कृत में अनुस्वार के स्थान पर पंचम वर्ण प्रत्येक वर्ग का पांचवा वर्ण का प्रयोग होता है किंतु हिंदी में पंच वर्ण के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग स्वीकृत किया जा चुका है ।
जैसे संस्कृत में पञ्च हिंदी रूप में पंच संस्कृत रूप में कण्ठ हिंदी रूप में कंठ आदि।
अनुनासिक को समानता चंद्रबिंदु कहा जाता है और नासिक्य स्वर है जिसका उच्चारण नाक और मुख दोनों से होता है तथा उच्चारण में लघुता रहती है जैसे गांव दांत आगन आदि।
विसर्ग (:)-
विसर्ग भी अनुस्वार कि भाति स्वर के बाद आने वाला व्यंजन हैं। इसका भी उच्चारण'ह' की तरह होता है ।संस्कृत में इसका प्रयोग प्रचुरता से होता है संस्कृत के जो तत्सम शब्द विसर्ग युक्त हैं वह हिंदी में भी विसर्ग के साथ लिखे जाते हैं ।
जैसे अतः, दु:ख है प्रातः अंतः कारण स्वत:आदि।
स्वरों के भेद
मात्रा के आधार पर स्वरों के भेद
मात्रा के आधार पर स्वरों के तीन भेद किए गए हैं मात्रा का तात्पर्य है वर्ण को बोलने में लगा समय यह तीन भेद इस प्रकार हैं ।हस्व स्वर-अ ,इ , उ, ऋ
दीर्घ स्वर -आ ,ई ,ऊ
प्लुत स्वर-
हस्व स्वर-अ ,इ , उ, ऋ
दीर्घ स्वर -आ ,ई ,ऊ
प्लुत स्वर-३
हस्व स्वर-ईश्वर को एकमात्र स्वर्ग कहा जाता है इनकी उत्पत्ति दूसरे स्वरों से नहीं होती तथा इनके उच्चारण में एक मात्रा का समय लगता है जैसे अ ,इ , उ, ऋ हस्व स्वर है।
दीर्घ स्वर-
किसी मूल या ह्स्व स्वर को उसी स्वर के साथ मिलने से दीर्घ स्वर बनता है । इसके उच्चारण में 2 मात्राओं का समय लगता है ।इसलिए इससे दि्वमात्रिक भी कहते हैं।
दीर्घ स्वर -जैसे आ ,ई ,ऊ ए,ऐ,ओ,औ
प्लुत-जिन स्वर के उच्चारण में 3 मात्राओं का अर्थात 3 गुना समय लगे उसे प्लुत कहते हैं । हिंदी में ब्लूटूथ का प्रयोग सामान्यतः नहीं होता यह संस्कृत में ही प्रयोग किया जाता है इसे त्रिमात्रिक स्वर भी कहते हैं।
जैसे-ओ३म्
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