Money शब्द लैटिन भाषा के moneta शब्द से बना है। कहां जाता है कि रूम में देवी जूनो के मंदिर में मुद्रा निर्माण का कार्य हुआ करता था और देवी जूनों को ही मॉनिटर के नाम से पुकारा जाता था।
इसके अतिरिक्त कुछ विद्वानों ने मनी money शब्द को लाइटिंग भाषा के ही pecunia शब्द से संबंधित किया है जो pecus शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है पशु संपत्ति प्राचीन काल में विश्व के लगभग सभी देशों में पशुओं को मुद्रा के रूप में प्रयोग किया गया था और रूम में भी ऐसा ही हुआ था अतः मुद्रा और पशु एक ही अर्थ में प्रयुक्त हुए अर्थात मुद्रा पशु संपत्ति का पर्याय हुई इस दृष्टि से मुद्रा शब्द अति पुरातन काल से ही प्रचलित है।
अर्थात यह कहा जा सकता है कि मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जिसका प्रयोग संपूर्ण विश्व अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए करता है।
मुद्रा के कार्य
इसके अतिरिक्त कुछ विद्वानों ने मनी money शब्द को लाइटिंग भाषा के ही pecunia शब्द से संबंधित किया है जो pecus शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है पशु संपत्ति प्राचीन काल में विश्व के लगभग सभी देशों में पशुओं को मुद्रा के रूप में प्रयोग किया गया था और रूम में भी ऐसा ही हुआ था अतः मुद्रा और पशु एक ही अर्थ में प्रयुक्त हुए अर्थात मुद्रा पशु संपत्ति का पर्याय हुई इस दृष्टि से मुद्रा शब्द अति पुरातन काल से ही प्रचलित है।
अर्थात यह कहा जा सकता है कि मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जिसका प्रयोग संपूर्ण विश्व अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए करता है।
मुद्रा के कार्य
मुद्रा के प्रमुख कार्य
*विनिमय का माध्यम और मूल्य का मापक
मुद्रा के सहायक या गौण कार्य
*भावी भुगतान ओं का आधार,
* क्रय शक्ति का संचय,
* मूल्य का हस्तांतरण
मुद्रा के आकस्मिक कार्य
*राष्ट्रीय आय का वितरण
* अधिकतम संतुष्टि का साधन ,
*पूजी की तरलता
*पूजी की गतिशीलता,
* साख का आधार
मुद्रा के प्रमुख कार्य-
मुद्रा के प्रमुख कार्य दो हैैै
-मुद्रा का कार्य केवल विनिमय करना ही नहीं है। अपितु वर्तमान समाज में मुद्रा द्वारा कई प्रकार के कार्य संपादित करने के कारण इसे आधुनिक युग में सामाजिक राजनीतिक एवं आर्थिक क्षेत्रों में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान दिया जाने लगा है अर्थात मुद्रा वर्तमान समाज में अनेक महत्वपूर्ण कार्य संपादित करते हैं।
मुद्रा के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
#विनिमय का माध्यम-माध्यम का अर्थ होता है कि एक दूसरे के बीच की कड़ी अर्थात क्रेता और विक्रेता के मध्य विनिमय एक माध्यम मुद्रा है । जिससे क्रेता वस्तुएं खरीदना है और वस्तुओं के बदले में विक्रेता क्रेता से मुद्रा लेता है। अतः मुद्रा क्रेता और विक्रेता के बीच में विनिमय का एक माध्यम है।
प्राचीन काल में विनिमय का माध्यम वस्तुएं हुआ करती थी अर्थात वस्तु विनिमय हुआ करता था जो वर्तमान प्रवेश में बहुत कठिन है हो गया है अर्थात वर्तमान समय में वस्तु विनिमय करना कठिन कार्य है।
#मूल्य का मापक-वस्तु विनिमय मैं वस्तु का मूल्यांकन करना कठिन था लेकिन मुद्रा विनिमय में वस्तुओं का मूल्यांकन करना सरल हो गया है मुद्रा विनिमय प्रणाली में सभी वस्तुओं का एक निश्चित मूल्य होता है उसके बदले क्रेता को उतनी मुद्रा देनी होती है अर्थात किसी भी वस्तु का मूल्य मापने के लिए मुद्रा का प्रयोग किया जाता है।
मुद्रा के सहायक या गौण कार्य- सहायक कार्य कार्य होते हैं, जोो प्राथमिक कार्य को संपन्न करनेे में सहायता करते हैं।
मुद्रा के सहायक और गौण कार्य निम्नलिखित हैं-*
#भावी भुगतानों का आधार- वस्तु विनिमय प्रणाली में भाभी भुगतान की व्यवस्था नहीं थी कोई ऋण तभी देता है जबकि उसे यह विश्वास हो जाता है कि उसे भविष्य में दी हुई रकम या विनिमय शक्ति वापस मिल जाएगी। अर्थात जितने रुपए की वह उधार दे रहा है। उतना रुपए उससे मिल जाएगा कि नहीं तभी वह उधार देते हैं। लेकिन वस्तु विनिमय में वस्तु का कोई मूल्य निश्चित नहीं होता वह हमेशा घटता बढ़ता रहता है इसलिए वस्तु विनिमय में ऋण की व्यवस्था नहीं थी।
भावी भुगतानों का आधार मुद्रा को इसलिए माना जाता है क्योंकि मुद्रा के मूल्य में सबसे कम परिवर्तन होते हैं तथा दूसरे यह सब को स्वीकार है। यह भी कहा जा सकता है कि आज हम किसी को ₹1000 दिए तो कुछ दिनों बाद उससे हम ₹1000 ही लेंगे अर्थात हम जितना दिए थे उतना हमको मिल जाएगा।
मुद्रा के सहायक और गौण कार्य निम्नलिखित हैं-*
#भावी भुगतानों का आधार- वस्तु विनिमय प्रणाली में भाभी भुगतान की व्यवस्था नहीं थी कोई ऋण तभी देता है जबकि उसे यह विश्वास हो जाता है कि उसे भविष्य में दी हुई रकम या विनिमय शक्ति वापस मिल जाएगी। अर्थात जितने रुपए की वह उधार दे रहा है। उतना रुपए उससे मिल जाएगा कि नहीं तभी वह उधार देते हैं। लेकिन वस्तु विनिमय में वस्तु का कोई मूल्य निश्चित नहीं होता वह हमेशा घटता बढ़ता रहता है इसलिए वस्तु विनिमय में ऋण की व्यवस्था नहीं थी।
भावी भुगतानों का आधार मुद्रा को इसलिए माना जाता है क्योंकि मुद्रा के मूल्य में सबसे कम परिवर्तन होते हैं तथा दूसरे यह सब को स्वीकार है। यह भी कहा जा सकता है कि आज हम किसी को ₹1000 दिए तो कुछ दिनों बाद उससे हम ₹1000 ही लेंगे अर्थात हम जितना दिए थे उतना हमको मिल जाएगा।
* क्रय शक्ति का संचय
संचय का अर्थ होता है की उसको अधिक समय तक रखना अर्थात कोई वस्तु हो उसको हम किसी स्थान पर अधिक समय तक रखें उसे हम संचय कहते हैं।
परंतु यहां बात है क्रय शक्ति का संचय अर्थात क्रय का अर्थ होता है खरीदना शक्ति का अर्थ होता है जिसके द्वारा और संचय का अर्थ होता है रखना वस्तु विनिमय में संजय को अधिक दिन तक नहीं रखा जा सकता क्योंकि वस्तुओं के नाशवान होने का खतरा ज्यादा रहता है इसलिए कहा जा सकता है कि मुद्रा के बिना क्रय शक्ति को संचित करना संभव नहीं था अब मनुष्य अपनी वस्तुओं और सेवाओं को बेचकर मुद्रा के रूप में धन प्राप्त कर लेता है तत्पश्चात अपने धन के एक भाग को वर्तमान में खर्च कर के शेष भाग को भविष्य के लिए मुद्रा के रूप में बेच लेता है।
* मूल्य का हस्तांतरण
हस्तांतरण का अर्थ होता है कि जिससे एक स्थान से दूसरे स्थान पर या एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को दिया जा सके या बदला जा सके
अर्थात मूल्य का हस्तांतरण में मुद्रा का महत्व होता है क्योंकि मुद्रा में तरलता होने के कारण इसे सरलता से एक स्थान से दूसरे स्थान को तथा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हस्तांतरित किया जा सकता है।
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