भाषा और चिन्तन
(LANGUAGE AND THINKING)
भाषा-विकास-भाषा का विकास बाल-विकास के अन्तर्गत मानसिक विकास का ही एक अभिन्न अंग है। भाषा के विकास से तात्पर्य बालक का शैशवावस्था से आजीवन अभिव्यक्ति के साधन 'भाषा को सीखते रहना है। भाषा का विकास अभिव्यक्ति के साधन के अतिरिक्त समाज में परस्पर विचार-विनिमय द्वारा सामाजिक समायोजन तथा जीवनयापन के साधन का प्रभावी प्रयोग करने हेतु व्यक्ति के लिए अपरिहार्य होता है। बाल्यावस्था में बालक मातृभाषा एवं अन्य भाषाएं भी सीखता है। भाषा का विकास बाल-विकास के साथ क्रमश आयु, अभिवृद्धि व मानसिक विकास के साथ होता रहता है। बाल्यकाल में प्रत्यक्ष ज्ञान, प्रत्यय ज्ञान व अवबोध का विकास हो जाता है। जिसे वह भाषा द्वारा अभिव्यक्त कर लेता है। उसमे सौन्दर्यानुभूति भी विकसित हो जाती है जिसे वह व्यक्त करने लगता है। भाषा के विकास की विशेषताएं
(1) भाषा भावो एवं विचारों की अभिव्यक्ति का साधन है।
(2) भाषा मनुष्य के भावात्मक विकास का साधन है।
(3) भाषा हमारी सृजनात्मक शक्ति के विकास का साधन है।
(4) भाषा हमारे चौद्धिक विकास, ज्ञानार्जन एवं चिन्तन का उत्कृष्ट साधन है।
(5) सामाजिक रचना एवं सामाजिक क्रिया-कलापों का आधार भाषा है। (6) सांस्कृतिक जीवन एवं संस्कृति का आधार भाषा है। चिन्तन- मनुष्य के सामने कभी-कभी किसी समस्या का उपस्थित होना स्वाभाविक है। ऐसी दशा में वह उस समस्या का समाधान करने के उपाय सोचने लगता है। वह इस बात पर विचार करना आरम्भ कर देता है कि समस्या को किस प्रकार सुलझाया जा सकता है। उसके इस प्रकार सोचने या विचार करने की क्रिया को 'चिन्तन' कहते हैं।
दूसरे शब्दों में, 'चिन्तन विचार करने की वह मानसिक प्रक्रिया है, जो किसी समस्या के कारण आरम्भ होती है और उसके अन्त तक चलती रहती है।
रॉस के शब्दों में, चिन्तन, मानसिक क्रिया का ज्ञानात्मक पहलू है या मन की बातों से सम्बन्धित मानसिक क्रिया है।"
चिन्तन की विशेषताएं
(CHARACTERISTICS OF THINKING)
सी. टी. मार्गन के शब्दों में, "वास्तव में प्रतिदिन की वार्ता में प्रयोग होने वाले चिन्तन शब्द में विभिन्न क्रियाओं की संरचना निहित है। इसका सम्बन्ध गम्भीर विचारशील क्रिया से है। इस दृष्टि से चिन्तन की विशेषताएं इस प्रकार हैं
(1) विशिष्ट गुण – चिन्तन, मानव का एक विशिष्ट गुण है, जिसकी सहायता से वह अपनी बर्बर अवस्था से सभ्य अवस्था तक पहुंचने में सफल हुआ है।
(2) मानसिक प्रक्रिया चिन्तन, मानव की किसी इच्छा, असन्तोष,
कठिनाई या समस्या के कारण आरम्भ होने वाली एक मानसिक प्रक्रिया है।
(3) भावी आवश्यकता की पूर्ति हेतु व्यवहार - चिन्तन किसी वर्तमान या भावी आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए एक प्रकार का व्यवहार है। हम अन्धेरा होने पर बिजली का स्विच दबाकर प्रकाश कर लेते हैं और मार्ग पर चलते हुए सामने से आने वाले वाहन को देखकर एक ओर हट जाते हैं।
(4) समस्या समाधान-मर्सेल (Mursell) के अनुसार, चिन्तन उस समय आरम्भ होता है, जब व्यक्ति के समक्ष कोई समस्या उपस्थित होती है. और वह उसका समाधान खोजने का प्रयत्न करता है।
(5) अनेक विकल्प – चिन्तन की सहायता से व्यक्ति अपनी समस्या का समाधान करने के लिए अनेक उपायों पर विचार करता है। अन्त में, वह उनमें से एक का प्रयोग करके अपनी समस्या का समाधान करता है।
(6) समस्या समाधान तक चलने वाली प्रक्रिया - इस प्रकार, चिन्तन एक पूर्ण और जटिल मानसिक प्रक्रिया है, जो समस्या की उपस्थिति के समय से आरम्भ होकर उसके समाधान के अन्त तक चलती रहती है।
चिन्तन के सोपान (STEPS OF THINKING)
ह्यूजोज (Hughos) ने चिन्तन के निम्न सोपान बताए हैं
(1) समस्या का आकलन (Appreciation of Problem) चिन्तन समस्या के उत्पन्न होने से सम्पन्न होता है। मूर्त तथा अमूर्त समस्याएं, जिज्ञासा के माध्यम से चिन्तन का आरम्भ करती है। इस पद में मूर्त से अमूर्त की और बढ़ा जाता है।
(2) सम्बन्धित तथ्यों का संकलन (Collection of Data) – समस्या को समझने के बाद उन तथ्यों को एकत्र किया जाता है जो समस्या का कारण खोजने में सहायक होते हैं। तथ्यों के संकलन में प्रेरणा का भी महत्व होता है।
(3) निष्कर्ष पर पहुंचना (Driving at Conclusion)—तथ्यों का संकलन कर उनका विश्लेषण किया जाता है। इस विश्लेषण से किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जाता है।
(4) निष्कर्ष का परीक्षण (Testing of Conclusion ) — चिन्तन में प्राप्त परिणामों का परीक्षण कर उसकी जांच की जाती है। इससे चिन्तन की वैधता तथा विश्वसनीयता की परीक्षा हो जाती है।
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