सन्त रविदास
कोई भी व्यक्ति अपने जन्म से नहीं कार्यों से महान बनता है। यह बात सन्तकवि रविदास ने अपने कार्य एवं व्यवहार से प्रमाणित कर दी। अपने कार्य के प्रति पूर्णतः समर्पित रहते हुए ईश्वर भक्तिपरक काव्य की रचना कर उन्होंने समाज को जो संदेश दिए वे आज भी प्रासंगिक है।
सन्त रविदास का जन्म काशी (वाराणसी) में हुआ। इनके पिता का नाम रग्घू तथा माता का नाम घुरबिनिया था। पिता चर्म व्यवसाय करते थे। सन्त रविदास भी वही व्यवसाय करने लगे। वे अपना कार्य पूरी लगन और परिश्रम से करते थे। समयपालन की आदत तथा मधुर व्यवहार के कारण लोग उनसे बहुत प्रसन्न रहते थे। साधु-सन्तों की सहायता करने में उन्हें अत्यन्त आनंद मिलता था।
स्वामी रामानन्द काशी के प्रतिष्ठित सन्त थे। रविदास उन्हीं के शिया हो गए। कार्य पूरा के बाद वे अधिकतर समय स्वामी रामानन्द के साथ ही बिताते थे।
मन चंगा तो कठौती में गंगा
एक बार कुछ लोग गंगास्नान के लिए जा रहे थे। उन्होंने रविदास से भी गंगा स्नान के लिए चलने का आग्रह किया। रविदास ने कहा गंगा स्नान के लिए मैं अवश्य चलता किन्तु मैंने एक व्यक्ति को उसका सामान बनाकर देने का वचन दिया है। यदि मैं उसे आज उसका सामान नहीं दे सका होन भंग होगा। गंगास्नान जाने पर भी मेरा मन तो यहाँ लगा रहेगा। मन जिस काम को अंतःकरण करने को तैयार हो यही उचित है। मन शुद्ध है तो इस कटौती के जल में ही गंगा स्नान का पुण्य मिल जाएगा।" कहते हैं तभी से यह कहावत प्रचलित हो गई मन चंगा तो कठौती में गंगा
रविदास का जन्म ऐसे समय में हुआ जब समाज में अनेक बुराइयाँ जैसे अन्धविश्वास, धार्मिक आडम्बर छुआछूत आदि। रविदास ने इन सामाजिक बुराइयों को दूर करने का प्र किया। वे स्वरचित भजन गाते थे तथा समाज सुधार के कार्य करते। उन्होंने लोगों को बताया कि बाह्य आडम्बर और भक्ति में बड़ा अंतर है। ईश्वर एक है। वह सबको समान भाव से प्यार करता है। यदि श से मिलना है तो आचरण को पवित्र करो और मन में भक्ति-भाव जाग्रत करो। आरम्भ में लोगों ने का विरोध किया किन्तु इनके विचारों से परिचित होने के बाद सम्मान करने लगे।
रविदास कर्म को हो ईश्वरभवित मानते थे। ये कर्म में इतने सीन रहते थे कि ग्राहक को सामान तो बनाकर दे देते पर उनसे दाम लेना भूल जाते थे।
रविदास दिनभर कर्म करते और भजन गाते थे। काम से खाली होने पर अपना साधुओं की संगति एवं ईश्वर भजन में बिताते थे रविदास के भजनों का हिन्दी साहित्य में विशेष स्थान है।
रविदास के विचार-
राम, कृष्ण, करीम, राघव, हरि, अल्लाह एक ही ईश्वर के विविध नाम है।
सभी धर्मों में ईश्वर की सच्ची अराधना पर बल दिया गया है।
करते हैं।
वेद, पुराण, कुरान आदि धर्मग्रंथ एक ही परमेश्वर का गुणगान ईश्वर के नाम पर किए जाने वाले विवाद निरर्थक एवं सारहीन है।
सभी मनुष्य ईश्वर की ही संतान है अतः ऊँच-नीच का भेद-भाव मिटाना चाहिए।
अभिमान नहीं अपितु परोपकार की भावना अपनानी चाहिए।
अपना कार्य जैसा भी हो वह ईश्वर की पूजा के समान है।
सन्त रविदास के सीधे-सादे तथा मन को स्पर्श कर लेने वाले विचार लोगों पर सटीक प्रभाव डालते थे। लोगों को लगता था कि रविदास के भजनों में उनके ही मन की बात कही गई है। धीरे-धीरे उनके शिष्यों की संख्या बढ़ने लगी। ये लोगों को समाज-सुधार के प्रति जागरूक करते तथा प्रभु के प्रति आस्थावान होने के लिए प्रेरित करते। वे सामाजिक सुधार एवं लोगों के हित में निरन्तर तत्पर रहते थे।
सन्त कवि रविदास अपने उच्च विचारों के कारण समाज एवं हिन्दी साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनका जीवन कर्मयोग का आदर्श उदाहरण है। उन्होंने अपने आचरण तथा व्यवहार से यह प्रमाणित कर दिया कि मनुष्य अपने जन्म तथा व्यवसाय के आधार पर महान नहीं होता अपितु विचारों की श्रेष्ठता समाज हित के कार्य, सद्व्यवहार जैसे गुण ही मनुष्य को महान बनाने में सहायक होते हैं।
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