सीमा द्योतक चिन्ह का क्या उपयोग होता है?
तथा पैमाइश के समय इसका क्या महत्व होता है?
जैसा कि नाम से ही आपको पता चल जाएगा कि सीमा द्योतक चिन्ह अर्थात जो किसी सीमा के भाग को बताएं अर्थात यह कहा जा सकता है कि किसी 2 गांव 2 राज्यों 2 जिलों या तीन जिलों 3 राज्यों 3 गांव के बीच एक रेखा जो बनती है जहां पर तीनों गांव या 2 गांव मिलते हैं। उसे सीमा कहते है।
उस गांव को अलग अलग करने के लिए नक्शे में 1 चिन्ह बनाया जाता है जिसे सीमा द्योतक चिन्ह कहते हैं। अर्थात यह कहा जा सकता है कि दो या दो से अधिक ग्रामों की सीमाओं के मोड या टेढ़ पर संबंधित ग्रामों की सीमाओं को अलग-अलग स्पष्ट करने के लिए जो चिन्ह पत्थर के या सीमेंट अथवा चुने के बनवा कर लगवाए जाते हैं वे सीमा द्योतक चिन्ह कहलाते हैं। इनको अधिक समय तक स्थाई बनाए रखने के लिए अधिक पक्के तथा टिकाऊ बनाया जाता है यह दोनों प्रकार के सीमा द्योतक चिन्ह बनाते समय उनका दो तिहाई भाग भूमि के नीचे रहता है। तथा मात्र एक तिहाई भाग ही भूमि के बाहर या ऊपर रखा जाता है। इससे इनके शीघ्र नष्ट कर दिए जाने की संभावना कम बनी रहती है भूमि के भीतर रखा जाने वाला भाग अधिक सुडोल तथा सुंदर नहीं बनाया जाता चाहे वह पत्थर का हो अथवा चुने य सीमेंट व ईटों का हो।
स्थल पर जहां जहां यह बनाए या लगाए जाते हैं सर्वेक्षण के अनुसार वे वही मान चित्रों पर भी बना दिए जाते हैं पुरे ग्राम के सर्वेक्षण करने अथवा व्यक्तिगत सीमा विवादों का निपटारा करने में वह सहायक होते हैं सर्वेक्षण एवं अभिलेख क्रियाओं या चकबंदी प्रक्रिया में भी यह सर्वे करने के आधार का कार्य करते हैं
सीमा द्योतक चिन्हो के प्रकार:-
सीमा द्योतक चिन्ह बनावट के आधार पर दो प्रकार के होते हैं। एक पत्थर के बने तथा दूसरे सीमेंट का चूना तथा ईटों के बने । वर्तमान में पत्थर का अधिक परिचलन तथा सरलता से उपलब्धता के कारण पत्थर के ही सीमा द्योतक चिन्ह अब सभी प्रकार की क्रियाओं में लगाए जाते हैं। ग्रामों की संख्या के हिसाब से इन्हें 2 ग्रामों की हदो पर लगाने के कारण दोहद्दा तीन ग्रामों की मिलाने वाली सीमाओं के स्थान पर लगाने वाले सिहद्दा और 4 ग्रामों की सीमाओं पर लगाने वाले पत्थर को चौहद्दा कहलाता हैं ।यह बनावट और ग्रामों की सीमाओं के अनुसार सीमा द्योतक चिन्हो के भेद हुए । यहां इस बात का उल्लेख करना भी आवश्यक है की भूमि का मूल्य अधिक बढ़ जाने के कारण सीमा विवाद भी अधिक उत्पन्न होने लगे हैं तथा उनका निराकरण चकबंदी प्रक्रिया और सर्वेक्षण एवं अगले की क्रियाओं के सर्वेक्षण में की जाने वाली त्रुटियों के कारण संभव नहीं हो पा रहा है मात्र स्थिति को मिलाकर ही काम चलाया जा रहा है
What is the use of boundary sign?
And what is its importance at the time of measurement?
As the name suggests, the boundary sign means that which tells the part of a boundary, that is, it can be said that a line is formed between any 2 villages, 2 states, 2 districts or three districts, 3 states, 3 villages, where But all three villages or two villages meet. It's called a limit.
To separate that village, 1 mark is made in the map which is called boundary sign. That is, it can be said that in order to differentiate the boundaries of the respective villages on the bend or slope of the boundaries of two or more villages, the signs which are made by making stone or cement or lime, they are the boundary marks. are called. To keep them permanent for a long time, they are made more firm and durable, while making both types of boundary signs, two-thirds of them remains under the ground. And only one third part is kept outside or above the ground. Due to this, the possibility of their being destroyed soon remains less. The part placed inside the ground is not made more curvy and beautiful, whether it is of stone or selective or cement and bricks.
According to the survey at the site where it is made or installed, they are also made on the same scale pictures, they are helpful in surveying the whole village or settling individual boundary disputes, it is also helpful in survey and record activities or consolidation process. serve as the basis for conducting surveys
Types of boundary signs:-
Boundary signs are of two types on the basis of their design. One made of stone and the other made of cement, lime and bricks. At present, due to more circulation and easy availability of stone, boundary marks of stone are now applied in all types of activities. According to the number of villages, because of applying them on the boundaries of 2 grams, the two-grams are called siddha and the stones placed on the boundaries of 4 villages are called Chauhadda. According to the structure and boundaries of the villages. There were differences of boundary signs. It is also necessary to mention here that due to the increase in the value of land, border disputes have also started arising more and their resolution is not possible due to the errors made in the consolidation process and survey and subsequent activities. The work is being done only by mixing the situation.
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